जल भँवर उभरे, कुछ किनारे तक
पहुंचे कुछ उभरते ही डूब गए,
कुछ कबीर थे, सांसों के
ताने - बाने बुनते
रहे, कुछ
बुद्ध
थे, बहुत जल्दी ज़िन्दगी से ऊब गए,
कुछ किनारे तक पहुंचे कुछ
उभरते ही डूब गए। इस
पथ में हैं कांटे अनेक,
फिर भी चलना
छोड़ा नहीं
जाए,
मोह के धागे मैंने ख़ुद हैं बांधे, सुख
दुःख का भागीदार मैं स्वयं हूँ,
कोई मुझे याद करे न करे,
इस ज़रा सी बात पर
नेह का बंधन
तोड़ा नहीं
जाए,
राह में छायापथ हो न हो, फिर भी -
चलना छोड़ा नहीं जाए। मेरी
ख़्वाहिशों के तहत प्रकृति
का विधान बदल
नहीं सकता,
नवजात
शिशु
की रहस्यमयी मुस्कान में सारा - -
ब्रह्माण्ड है शामिल, फिर भी
आज के इस महोत्सव से,
कल की ख़ुशी का
पता चल नहीं
सकता,
कोई कितना भी ज़ोर आज़मा ले - -
क़ुदरत का नियम बदल
नहीं सकता।
* *
- - शांतनु सान्याल
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (18-11-2020) को "धीरज से लो काम" (चर्चा अंक- 3889) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
-- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
हार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 17 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंइस
जवाब देंहटाएंपथ में हैं कांटे अनेक,
फिर भी चलना
छोड़ा नहीं
जाए,
सुंदर अभिव्यक्ति..।
हार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंकुछ कबीर थे, सांसों के
जवाब देंहटाएंताने - बाने बुनते
रहे, कुछ
बुद्ध
थे, बहुत जल्दी ज़िन्दगी से ऊब गए...बहुत ही गहरे भाव लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति आदरणीय सर।
हार्दिक आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंआज,है तभी तक उसे ग्रहण कर लें ,कल वह भी नहीं रहेगा.
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंवाह! अद्भुत,अप्रतिम
जवाब देंहटाएंविचारों को बहुत सुंदर से उकेरा है आपने।
हार्दिक आभार - - नमन सह।
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