12 नवंबर, 2020

उम्मीद के पंख - -

बिखरे हुए हैं, कुछ नीलकंठ के पंख,
शुष्क नदी के किनारे, खोजती
है ज़िन्दगी, पदचिन्हों के
नीचे, जल स्रोत के
लुप्त ठिकाने,
समय भर
न सका,
सीने
के सभी कोटर हमारे, फिर भी चल -
रहे हैं, हम न जाने किस उम्मीद
के सहारे। सुदूर कहीं से आ
रही है भीगी हवा, माटी
का गंध समेटे, मैं
फिर लौट के
आऊंगा
इसी
नदी तट पर, पुनर्जन्म से लड़ कर, -
सारे जिस्म में जल प्रपात को
लपेटे। तुम मेरा इंतज़ार
करना, इन्हीं शैल -
चित्रों के नीचे,
मैं तुम्हें
मुक्त
करूँगा एक दिन इस मरू धरातल
से, मुझे मालूम है, दुनिया के - -
आबोहवा का विज्ञान,
लेकिन तुम न
करना यक़ीं
इन
नक़ली भविष्यवाणियों पर, एक -
दिन शदीद बारिश, ज़रूर
निजात देगी, सभी
दुःख - दर्द के
हलाहल
से।

* *
- - शांतनु सान्याल  
 

 

12 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. दीपावली की असंख्य शुभकामनाएं, हार्दिक आभार - - नमन सह।

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  2. सुंदर, सार्थक रचना 🙏

    दीपोत्सव पर हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🚩🙏
    - डॉ शरद सिंह

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    उत्तर
    1. दीपावली की असंख्य शुभकामनाएं, हार्दिक आभार - - नमन सह।

      हटाएं
  3. बहुत सुन्दर।
    रूप-चतुर्दशी और धन्वन्तरि जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१४-११-२०२०) को 'दीपों का त्यौहार'(चर्चा अंक- ३८८५) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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