02 नवंबर, 2020

शिनाख़्त ज़रूरी है - -

कुआं अपनी जगह लिए रहता है
रहस्य की दुनिया, ये अंधत्व
है तुम्हारा, जो बिन सोचे
समझे विष बेल
को अपने
देह
में लपेटते हो, वो कोई प्रेम न था
बल्कि धर्मांध आवेश,जो तुम्हें
दे गया उम्र भर तड़पने
का आदेश, वो
शख़्स नहीं
था
जो उसने ख़ुद को बताया, अब
तुम बिखरा हुआ अस्तित्व
समेटते हो, बिन सोचे
समझे विष बेल
को अपने
देह
में लपेटते हो। तुम्हारे संस्कार
में थे जन्मजात दया धर्म
के बीज, उसने शैशव
से देखा था केवल
घातकता,
उसके
नज़र में एक हैं निरीह पशु और
भिन्न धर्मीय लोग, उसका
उन्माद तुम्हारे जीवन
का है सर्वनाश,
शांति का
मुखौटा
ओढ़
कर ये लोग सिर्फ़ चाहते अपने
पंथ की लामबंदी, फेंकते है
झूठे नाम का चारा,
ज़हर बुझे
तीरों
से
करते हैं शिकार अपने आसपास,
उसका उन्माद तुम्हारे जीवन
का है सर्वनाश - -

* *
- - शांतनु सान्याल
 



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