कुआं अपनी जगह लिए रहता है
रहस्य की दुनिया, ये अंधत्व
है तुम्हारा, जो बिन सोचे
समझे विष बेल
को अपने
देह
में लपेटते हो, वो कोई प्रेम न था
बल्कि धर्मांध आवेश,जो तुम्हें
दे गया उम्र भर तड़पने
का आदेश, वो
शख़्स नहीं
था
जो उसने ख़ुद को बताया, अब
तुम बिखरा हुआ अस्तित्व
समेटते हो, बिन सोचे
समझे विष बेल
को अपने
देह
में लपेटते हो। तुम्हारे संस्कार
में थे जन्मजात दया धर्म
के बीज, उसने शैशव
से देखा था केवल
घातकता,
उसके
नज़र में एक हैं निरीह पशु और
भिन्न धर्मीय लोग, उसका
उन्माद तुम्हारे जीवन
का है सर्वनाश,
शांति का
मुखौटा
ओढ़
कर ये लोग सिर्फ़ चाहते अपने
पंथ की लामबंदी, फेंकते है
झूठे नाम का चारा,
ज़हर बुझे
तीरों
से
करते हैं शिकार अपने आसपास,
उसका उन्माद तुम्हारे जीवन
का है सर्वनाश - -
* *
- - शांतनु सान्याल
02 नवंबर, 2020
शिनाख़्त ज़रूरी है - -
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह ।
हटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह ।
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह ।
हटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह ।
जवाब देंहटाएं