जिल्द का आईना था, दिल में उतरने वाला,
जब क़रीब से पढ़ा उसको, तो पाया
वो महज शब्दों का था माया -
जाल, भीड़ भरे चौक
में ख़्वाबों का
तिलिस्म
सरे -
आम बेचने वाला, दरअसल हमारे पास हैं -
विकल्पों की कमी, और इसी का
उठाते हैं, लोग ज़बरदस्त
फ़ायदा, उन्हें मालूम
है, उनके सिवा
कोई नहीं
यहाँ
सम्मोहनी चाल से जीतने वाला, हमारी -
बेबसी को झूठे ख़्वाबों के सिवा कोई
राहत नहीं, सिर्फ़ आज जी लें
कल की कोई चाहत नहीं,
वो अच्छी तरह से
जानते हैं
ये
अश्व है, पराजित युद्ध का, ये कभी नहीं
बिदकने वाला, और अगर कहीं से
कोई हिनहिनाए, तो उसे
आँखों में पट्टी बांध
कर राजपथ
पर सर -
पट
दौड़ाया जाए, ये नश्ल आसानी से नहीं -
मरने वाला - -
* *
- - शांतनु सान्याल
18 नवंबर, 2020
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
बिदकने वाला, और अगर कहीं से
जवाब देंहटाएंकोई हिनहिनाए, तो उसे
आँखों में पट्टी बांध
कर राजपथ
पर सर -
पट
दौड़ाया जाए, ये नश्ल आसानी से नहीं -
मरने वाला - -
सत्य वचन
सुन्दर रचना
हार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंजब क़रीब से पढ़ा उसको, तो पाया
जवाब देंहटाएंवो महज शब्दों का था माया -
जाल, भीड़ भरे चौक
में ख़्वाबों का
तिलिस्म...।सच कहा है आपने..।सटीक अभिव्यक्ति..।
हार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएं