मुझ से आंसू देखे नहीं जाते, आँखों
को बंद कर लो, सीने के किसी
कोने में अश्रु कण जमा
रहने दो, जिसने
तुम्हें दर्द
दिया
है
तुम उसे ही मजबूर करो रोने के - -
लिए, मेरा यक़ीं रखो तुम्हें
किसी और की बैसाखी
की ज़रूरत न होगी,
एक बार पुनः
खड़े होने
की
ख़ुद से कोशिश तो करो, दरअसल
दुःख वही पाते हैं जिनका दिल
शीशे की तरह साफ़ होता
है, और ये इंसानी
फ़ितरत है कि
वो अपना
असली
अक्स
नहीं
देखना चाहता, नतीजतन जल - -
दर्पण में पत्थर फेंकता है,
उसे अस्थिर करना
उसका मक़सद
बन जाता
है ये
कमतरी का अहसास ही उसे आख़िर
में सज़ा देता है, तुम पोंछ लो
अपनी पलकें, जो गुज़र
गया वो अतीत था,
कोई दुःस्वप्न
था फिर
एक
बार बसाओ रौशनी का शहर, नयी -
उमंगों के संग नया ज़िन्दगी का
सफ़र, फिर उतर आए हैं
आसमां से ज़मीं पे,
शब ए दिवाली
के रहगुज़र।
* *
- - शांतनु सान्याल
09 नवंबर, 2020
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सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर 🌻
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह।
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