मेरा अंतर्मुखी रूप समय के
पूर्व, दरअसल, इंसान
जिस से बहुत प्यार
करता है उसे
हर हाल
में
स्वीकार करता है, उसके लिए क्या
आईना और क्या अंध कूप,
उसने नहीं चाहा था
देखना मेरा
अंतर्मुखी
रूप।
कदाचित उसे मालूम था कुंदन का
भुरभुरापन, इसलिए उसने
मिश्रित स्वर्ण का किया
चयन, कोई भी
नहीं जगत
में शत -
प्रतिशत परिपूर्ण, हर व्यक्ति को -
चाहिए निखरने के लिए, कुछ
सर्दियों की नाज़ुक धूप,
उसने नहीं चाहा था
देखना मेरा
अंतर्मुखी
रूप।
मेरे चरित्र की सभी गहराइयों को
उसने आत्मसात किया, इसी
बिंदु से, दैहिक मोह का
सांकल टूटा और
उपासना का
सूत्रपात
हुआ,
जो अंतहीन रहस्य अपने आप में
है समेटे हुए वही शास्वत
प्रेम है अंतरिक्ष के
स्वरुप, उसने
नहीं चाहा
था
देखना मेरा अंतर्मुखी रूप। तब -
वो पंच धातु का पिंजरा
ख़ुद ही खोल देता है
कपाट महाशून्य
की ओर किन्तु
प्राण पंछी
सिर्फ़
विरक्त नज़रों से देखता है बहते
हुए अंतरिक्ष को, वो बांध
चुका है, अपने पांवों
में अमर प्रणय
का लौह -
स्तूप,
उसने नहीं चाहा था देखना मेरा -
अंतर्मुखी रूप।
* *
- - शांतनु सान्याल
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 21 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (22-11-2020) को "अन्नदाता हूँ मेहनत की रोटी खाता हूँ" (चर्चा अंक-3893) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
हार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंपूर्व, दरअसल, इंसान
जवाब देंहटाएंजिस से बहुत प्यार
करता है उसे
हर हाल
में
स्वीकार करता है, उसके लिए क्या
आईना और क्या अंध कूप,
–सच्चाई
–सुन्दर उकेरी गयी शब्दों से चित्र.. बधाई
हार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति..।हर पंक्ति कुछ कहती हुई..।बहुत बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंबेहद खूबसूरत सृजन
जवाब देंहटाएंवो पंच धातु का पिंजरा
ख़ुद ही खोल देता है।
कपाट महाशून्य
की ओर किन्तु
प्राण पंछी...आपकी रचनाओं में दर्शन का अंबार मिलता।बार-बार पढ़ने को प्रेरित करतीं हैं।
सादर
हार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएं