23 नवंबर, 2020

अस्तित्व का रास्ता - -

झरते हुए उस पत्ते की तरह मैं
उड़ता रहा, बहुत देर तक
शून्य में, हवाओं के
हाथों में था
उतरने
का   
ठिकाना, जब हवाओं ने मेरा -
साथ छोड़ दिया, तब मैंने
ख़ुद को झील में
तैरता पाया,
अब
लहरों के हाथों में था पथरीली
किनार तक मुझे पहुँचाना,
गंत्वय पाना इतना
भी आसान
नहीं
समय स्रोत में निरंतर है बहते
जाना, मिलते हैं इस
बहाव में कुछ
कोहरे में
डूबे
पड़ाव, कुछ अंधकार में डूबते
उभरते द्वीप, कुछ नील
आलोक में जलते
बुझते सपनों
के गाँव,
कुछ
सुबह की मोती बिखेरते हुए - -
वक्षस्थल के सीप, कितने
ठौर, कितने बंदरगाह,
लेकिन सूर्यास्त
के बाद सब
की एक
ही है
ज़बान, कुछ उद्भासित कुछ नेह
के भीतर, अदृश्य मरुद्यान,
मनुष्य, आँख खुलने
से पहले ही देख
लेता है, गर्भ -
गृह के
गहन
तम से, उजालों का उद्गम - -
स्थान।

* *
- - शांतनु सान्याल  


8 टिप्‍पणियां:

  1. हर रात के बाद ही सवेरा है अन्धकार के बाद ही उजाला है पर ये नहीं भूलना कि हर उजाले के बाद पुनः अंधेरा अवश्यंभावी है
    मनुष्य, आँख खुलने
    से पहले ही देख
    लेता है, गर्भ -
    गृह के
    गहन
    तम से, उजालों का उद्गम - -
    स्थान।
    बहुत ही सटीक जीवन का अटल सत्य वयां करती बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति...
    वाह!!!

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