16 नवंबर, 2020

अगोचर गंत्वय की ओर - -

ये पथ जाता है अदृश्य दिगंत की ओर,
मिलते हैं हर मोड़ पर धूप - छांव
के पड़ाव, खेत - खलिहान,
कच्चे पक्के, उम्मीद
के मकान, कुछ
परित्यक्त
नीड़,
बुलबुलों में बसे हुए हैं कुछ कंजरों के -
गाँव, मिलते हैं हर मोड़ पर धूप -
छांव के पड़ाव, बबूल शाखों
में झूलते हैं कुछ गोधूलि
के रंग, ईशान कोण
में उड़ चले हैं
प्रवासी
पंछियों के झुंड, दूरगामी ट्रेन के संग,
जीवन की रंगोली है चिरस्थायी,
उभरती है मध्य आँगन से
हो कर साँझ के गहन
अंतर्मन तक,
तुम हो
हर
समय मौजूद, सुदूर मझधार से बहते
हुए, शंख ध्वनि के अंतरंग, कभी
बोझिल दिन, कभी आयु से
लम्बी रात, फिर भी
मन में नहीं ज़रा
भी थकाव,
मिलते
हैं
हर मोड़ पर धूप - छांव के पड़ाव, इस
जीवन को नहीं चाहिए थोड़ा भी
ठहराव, असमाप्त यात्रा ही
ले जाती है चिर शांति
के देश, अगोचर
गंत्वय की
ओर।

* *
- - शांतनु सान्याल  

7 टिप्‍पणियां:

  1. इस
    जीवन को नहीं चाहिए थोड़ा भी
    ठहराव, असमाप्त यात्रा ही
    ले जाती है चिर शांति
    के देश, अगोचर
    गंत्वय की
    ओर।....बहुत सटीक अभिव्यक्ति!!

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  2. वाह!निशब्द शब्द चित्र सर।
    सादर

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