कुछ वृत्तांत के नहीं होते उपसंहार,
वास्तविकता के आगे जीवन -
कथा हार जाती है हर
बार, कोई रुका
नहीं रहता
किसी
के
लिए, बस स्मृति जम कर बनाती हैं
हिम युग का संसार, कुछ लगाव
उभर पाते ही नहीं उष्ण
चाय की प्याली से,
उंगलियों में
रहते हैं
सिर्फ
चिपचिपाहट के अहसास, बिस्कुट के
रंग का सूरज, डूब के तलाशता
है नयी सुबह, नदी के उस
पार, सभी लोग लौट
जाएंगे अपने
अपने
घर,
धुआं भी जा मिलेगा किसी और धुएं के
साथ, नदी के सीने में क्या रहस्य है
ये वही जाने, मंदिर के अहाते,
बूढ़े बरगद में नहीं रुकता
कभी, पक्षियों का
कोलाहल -
भरा
बाज़ार, प्राचीन देवालय का दीया बुझ
के भी जलता रहता है रात भर,
दिवानिशि के अनुबंध में
बंधा रहता है जीवन
का सफ़र, कहाँ
थमता है
इस
जग में प्राणों का विनिमय, सपनों का
कारोबार - -
* *
- - शांतनु सान्याल
26 नवंबर, 2020
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
बहुत अच्छी कविता
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंलगातार लिख रहे हैं जैसे नदी बह रही हो। जारी रहे सफ़र।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंउत्कृष्ट शब्द विन्यास के साथ विशेष रूप की पिरामिड शैली निरंतर ही पाठकों को आकर्षित करती है जिसमें मैं भी शामिल हूँ।
जवाब देंहटाएंसादर
तहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंहर
जवाब देंहटाएंबार, कोई रुका
नहीं रहता
किसी
के
लिए, बस स्मृति जम कर बनाती हैं
हिम युग का संसार....
कोमल भावों से परिपूर्ण बहुत सुंदर रचना !!!
हार्दिक बधाई!!!
तहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएं