मीन, शंख, सीप, बहते हुए प्रदीप, सभी
लौट गए अपनों के समीप, किनारा
अकेला ही रहा अंतिम पहर में,
तुम थे तो सब कुछ था
नाम, फलक, पता -
ठिकाना, लोगों
का आना -
जाना,
तुम जब नहीं तो कुछ भी नहीं ज़िन्दगी
के लहर में, रौशनी की दुनिया है
आबाद, हमेशा की तरह,
उसी साहिल के
आँचल में,
फिर भी
न
जाने क्यों, अक्स नहीं उभरे समंदर में,
शायद तुम्हारे वजूद से था, रूह का
संयोजन, जन्म जन्मांतर का
मेल बंधन, वरना शून्य
के सिवा, कुछ भी
न था काग़ज़
के घर में,
इस
रात के सीने में हैं लापता, कितने ही -
साँझ बाती, मैं लौट तो जाऊं, बस
शर्त है इतना, तुम दिल का
चिराग़ जलाए रखना,
उसी उजड़े हुए
रहगुज़र -
में,
किनारा अकेला ही रहा अंतिम पहर -
में।
* *
- - शांतनु सान्याल
14 नवंबर, 2020
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बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंशुभ दीपावली।
दीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं सभी को ।
हटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह।
दीप पर्व शुभ हो। सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंदीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं आपको भी । हार्दिक आभार - - नमन सह।
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