उसूलों की दुहाई में, न जाने कितने
फ़रेब देखे, बदलती रही क़दमों
की थिरकन, समझौते
इतने कि उम्र भी
अपनी याद
नहीं,
हमने ज़ंजीरों में छुपे कितने ही - -
पाज़ेब देखे। है दुआओं वाली
रात, उतरे हैं आसमां
से अनगिनत
चिराग़,
कुछ
धुंधलाए चेहरों में ज़िन्दगी की लौ
बेहिसाब देखे, जब बुझ गए
सारे दीये, सुनसान राहों
में, न जाने कितने
ही अपाहिज
ख़्वाब
देखे।
तुम्हारे आँगन में शायद उतरे हों - -
उपहार वाले फ़रिश्ते, सुबह
दहलीज़ पे हमने, दग्ध
पांवों के निशान
देखे, कौन
आया
था
कल रात कहना है बहोत मुश्किल, -
ज़मीं थी रौशन सहस्त्र दीयों
के लौ से, लेकिन न जाने
क्यों रात को बहोत
परेशान देखे।
* *
- - शांतनु सान्याल
14 नवंबर, 2020
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दीपोत्सव की मंगलकामनाएं।
जवाब देंहटाएंदीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं ।
हटाएंदीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।🌻
जवाब देंहटाएंदीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं । हार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंदीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं । हार्दिक आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर है यह " शायद " .
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह।
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