नेह रेखाएं कुछ अर्थ छुपाएँ - -
कह गए निष्पलक मन की बातें,
थमी थमी सी घटायें पर्वत पर्वत
बिंदु बिंदु फिर बरसना चाहें,
इस सघन रात में
विगत रहस्य न खोलें,
अधर रहें मौन, नयन बने सेतु
उन्मुक्त करें अतीत पिंजर
बोझिल साँसें हैं व्याकुल उड़
जाने को,
मनुहार ह्रदय का मानो
कुछ मुस्कान बिखरे, निशि पुष्प
हैं आतुर खिल जाने को,
दूर बिहान प्रतीक्षारत है लिए
कोमल धूप तन मन में,
इस क्षण में तुम यूँ निःस्तब्ध
रहो न,
नव प्रणय स्वीकार करो
जीवन प्रवाह अविरल गतिमय,
इस सरल पथ को वक्र रेखाओं
से मुक्त करो,
जो कल था वो आज नहीं
आज न कल होने दो,
इस पल में फिर स्वप्न मधुर
बो लेने दो,
इतना भी न सोचो की चाँद ही
ढल जाये प्राची में,
क्षणिक ही सही चंद्रिमा के कुछ
कण चुन लें, महकती सांसों को
घुल जाने दो,
अभिनव आभास जीवन में - -
आने दो - -
- - शांतनु सान्याल
18 दिसंबर, 2022
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