03 दिसंबर, 2022

मोम का सांचा - -

अक्स कुछ बदला सा नज़र आए, मोम का सांचा था, निःशब्द अपने आप के संग

मिला गया कोई, एक विचित्र सी

अनुभूति है देह के बहुत अंदर, 

अभिशप्त पत्थरों को पुनः

जिला गया कोई । उस

प्रणय पिंजर के

मध्य हैं न

जाने 

कितने ही अंध मोहपाश, हृदय पट पर रहते

हैं फंसे सहस्त्र अदृश्य फांस, उम्र भर जो

देते हैं मीठे दर्द का एहसास, बंजर

भूमि में सहसा, अनगिनत फूल

खिला गया कोई, निःशब्द

अपने आप के संग 

मिला गया 

कोई ।

- - शांतनु सान्याल


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past