06 दिसंबर, 2022

स्पर्श - -

ख़ामोशी बड़ी बुरी शै है बढ़ा जाती है दूरियां,
गिरह इस तरह से न बाँधी जाए कि उन्हें
खोलने में एक उम्र गुज़र जाए, हर
कोई इस जहां में पारस नहीं
होता कि छूने भर से
जिस्म, कुन्दन की
तरह निखर
जाए ।
इस ज़िन्दगी का हासिल ज़रूरी नहीं कि जीतें
हर बार हम, चौसठ योगिनियों का है खेल
सारा, जाने किस ख़ाने पर आ कर
सांस हमारी ठहर जाए । झुलसा
जाती है अक्सर आग्नेय
चाहत बहुत अंदर
तक, जीना
हो जाए
मुहाल,
मरना भी मुश्किल, किसे पता, कब और कैसे
मुहोब्बत का ये संगीन असर जाए ।
* *
- - शांतनु सान्याल

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