20 दिसंबर, 2022

बेग़र्ज़ यहाँ कोई नहीं - -

ख़ार ओ संग का है रास्ता, इसे कहकशां न समझें,
हर शू है घना अंधेरा इसे रौशनी का जहां न समझें,

ख़्वाब में सजा लेना अपना मेहराब चाँद सितारों से,
ज़िन्दगी का सफ़र है, इसे  शाह ए कारवां न समझें,

ये दौर है  तस्वीर निगारी का, सिर्फ़  मुस्कुराते रहिए,
क़ातिल है या दोस्त, हर किसी को पासबां न समझें,

किस अदा से यूँ नाख़ून छुपाए हाथ मिला गया कोई,
पुरअमन चेहरे को बुझा हुआ आतिशफिशां न समझे,

ज़ेरे फ़सील पे हैं पोशीदा वहशत फिर भी जीना होगा,
बेग़र्ज़ यहाँ कोई नहीं, हर शख़्स को मेहरबां न समझे,
* *
- - शांतनु सान्याल  


 
 

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