05 दिसंबर, 2022

पतझर की कहानी - -

स्मृति आलोक दीर्घायु नहीं होते, बहुत जल्द
लोग भूल जाते हैं झरते पत्तों की कहानी,
सूखे पलों को कोई नहीं चाहता है
सहेजना, टहनियों में कोंपलें
उभरते हैं रिक्त स्थानों
को भरते हुए, हिम
परतों के नीचे
सदैव रहता
है जमा
हुआ
पानी, लोग भूल जाते हैं झरते पत्तों की कहानी ।
जिल्द चाहे जितना भी हो रंगीन, श्वेत श्याम लकीरों में लिखी रहती हैं ज़िन्दगी की
दास्तां, हर एक को गुज़रना होता
है एक दिन तपते हुए धरातल
से, अक्सर बेबस होता है
उन लम्हों में नीला
आसमां, कोई
नहीं उठाता
ख़ुद के
सिवा
ज़िन्दगी की परेशानी,  बहुत जल्द लोग भूल जाते हैं झरते पत्तों की कहानी ।
* *
- - शांतनु सान्याल

13 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना बुधवार ७ दिसंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. कोई
    नहीं उठाता
    ख़ुद के
    सिवा
    ज़िन्दगी की परेशानी, बहुत जल्द लोग भूल जाते हैं झरते पत्तों की कहानी ।
    बहुत सटीक...
    लाजवाब ।

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  3. वाह, बहुत जल्द भूल जाते हैं लोग ऐरते पत्तों की कहानी... वाह उत्कृष्ट रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. जीवन की निस्सारता पर, दुनिया की सार्वभौम उदासीनता को उजागर करती एक रचना।जिसमें कवि मन के गहन नैराश्य भाव की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है।कहाँ कोई मिट गये लम्हों को सहेजता है--आत्ममुग्धता में जी रहे लोगों का यही सच है।सादर

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  5. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (8-12-22} को "घर बनाना चाहिए"(चर्चा अंक 4624) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

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  6. हरेक को अपनी सलीब खुद ही उठानी होती है, गहरा जीवन दर्शन

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  7. आदरणीय शांतनु सान्याल जी ! नमस्कार !

    ज़िन्दगी की परेशानी, बहुत जल्द लोग भूल जाते हैं ...
    सुन्दर भाव एवं प्रकटीकरण ,बहुत अभिनन्दन !
    जय श्री कृष्ण !

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