स्मृति आलोक दीर्घायु नहीं होते, बहुत जल्द
लोग भूल जाते हैं झरते पत्तों की कहानी,
सूखे पलों को कोई नहीं चाहता है
सहेजना, टहनियों में कोंपलें
उभरते हैं रिक्त स्थानों
को भरते हुए, हिम
परतों के नीचे
सदैव रहता
है जमा
हुआ
पानी, लोग भूल जाते हैं झरते पत्तों की कहानी ।
जिल्द चाहे जितना भी हो रंगीन, श्वेत श्याम लकीरों में लिखी रहती हैं ज़िन्दगी की
दास्तां, हर एक को गुज़रना होता
है एक दिन तपते हुए धरातल
से, अक्सर बेबस होता है
उन लम्हों में नीला
आसमां, कोई
नहीं उठाता
ख़ुद के
सिवा
ज़िन्दगी की परेशानी, बहुत जल्द लोग भूल जाते हैं झरते पत्तों की कहानी ।
* *
- - शांतनु सान्याल
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना बुधवार ७ दिसंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
कोई
जवाब देंहटाएंनहीं उठाता
ख़ुद के
सिवा
ज़िन्दगी की परेशानी, बहुत जल्द लोग भूल जाते हैं झरते पत्तों की कहानी ।
बहुत सटीक...
लाजवाब ।
आपका हृदय से आभार, नमन सह ।
हटाएंवाह, बहुत जल्द भूल जाते हैं लोग ऐरते पत्तों की कहानी... वाह उत्कृष्ट रचना
जवाब देंहटाएंआपका हृदय से आभार, नमन सह ।
हटाएंजीवन की निस्सारता पर, दुनिया की सार्वभौम उदासीनता को उजागर करती एक रचना।जिसमें कवि मन के गहन नैराश्य भाव की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है।कहाँ कोई मिट गये लम्हों को सहेजता है--आत्ममुग्धता में जी रहे लोगों का यही सच है।सादर
जवाब देंहटाएंआपका हृदय से आभार, नमन सह ।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (8-12-22} को "घर बनाना चाहिए"(चर्चा अंक 4624) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
आपका हृदय से आभार, नमन सह ।
हटाएंहरेक को अपनी सलीब खुद ही उठानी होती है, गहरा जीवन दर्शन
जवाब देंहटाएंआपका हृदय से आभार, नमन सह ।
हटाएंआदरणीय शांतनु सान्याल जी ! नमस्कार !
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी की परेशानी, बहुत जल्द लोग भूल जाते हैं ...
सुन्दर भाव एवं प्रकटीकरण ,बहुत अभिनन्दन !
जय श्री कृष्ण !
आपका हृदय से आभार, नमन सह ।
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