24 दिसंबर, 2022

आदि अंत विहीन - -

दिवसांत में सोचता हूँ, आज का दिन तो
अच्छी तरह से गुज़र गया, ये और
बात है कि उम्र के पिरामिड से
एक अंक नीचे खिसक
गया, बालकनी
की धूप भी
पलक
झपकते हो गई लापता, अन्य धर्म जब -
बन जाए हिंस्र, तो कैसे निरामिष
होगी हमारी आस्था, पार्थ हर
हाल में उठाएगा गाण्डीव,
सामने खड़ी रहती है
मौन उत्तरजीविता,
मालूम नहीं
कौन था
जो
माथे पर संधि पत्र लिख गया, दिवसांत
में सोचता हूँ, आज का दिन तो
अच्छी तरह से गुज़र गया।
ग़र जीवित हैं हम, तो
अन्याय का हर हाल
में करें पुरज़ोर
प्रतिवाद,
वरना
घेर
लेगा हमें जीते जी अपकर्ष का अवसाद,
ये भी सच है कि हिंसा - प्रतिशोध
से कोई हल नहीं निकलता,
फिर भी देश हित हो
या धर्म युद्ध हमें
शस्त्र उठाना
ही होगा,
सीमा
पार हो या देश के अंदर, शत्रु पक्ष को - -
हराना होगा, आदि अंत विहीन
सत्य धर्म ध्वज फहराना
होगा - -
* *
- - शांतनु सान्याल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past