08 दिसंबर, 2022

 रेशमी लिहाफ़ - -

वादियों में बहुत दिनों बाद खिली है
नरम धूप, भीगे पंखों को इक
ताज़गी भरा एहसास
मिले, गुलाब की
पंखुड़ियों में
हैं बिखरे
हुए
शबनमी मोती, ज़िन्दगी को भी क्यूं
न दोबारा खिलने का अंदाज़
मिले। दरिया ए बर्फ़
के नीचे हैं छुपे
हुए अनगिनत
राहत के
बहाव,
ख़्वाहिशों में रहे शामिल सितारों भरा
आस्मां, सर्द हौसलों को असीम
परवाज़ मिले, ज़िन्दगी
को भी दोबारा
खिलने का
अंदाज़
मिले। पश्मीना लिहाफ़ों में हैं बंद जिस्म
ओ रूह के दास्तां ए पुरअसरार,
कौन सी थी वो ज़मीं या
या बेल बूटों का था
कोई तिलस्मी
फ़लक,
किस
दुनिया का था वो ख़ूबसूरत दयार, उन
शब्दहीन पलों को इक बुलंद
आवाज़ मिले, ज़िन्दगी
को भी दोबारा
खिलने का
अंदाज़
मिले।
* *
- - शांतनु सान्याल

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