02 दिसंबर, 2022

तर्जुमा ए ख़्वाब - -

हर बार लौट आता है, पिंजरे का परिंदा अपनी जगह,
दुनिया है हैरां, देख कर मुझ को  ज़िंदा अपनी  जगह,

उस अहाते की शबनमी चाँदनी आती है मेरे घर तक,
ख़ुश्बू ए गुल बदन बनी रहती है, आहट ए सहर तक,

लौट आता हूँ मैं ख़ला ए अज़ीम से किसी की चाह में,
तलाशता हूँ मैं अनमोल मोती, किसी गहरे  निगाह में,

दहलीज़ पे कोई अक्सर रख जाता है, म'अतर  रुमाल,
एहसास ए लम्स है या कोई ओढ़ा जाए कश्मीरी शाल,

नरम धूप को बुलाता है धीरे से अधखिला सुर्ख़ गुलाब,
नम पंखुड़ियों में है छुपा कहीं  अदृश्य तर्जुमा ए ख़्वाब,
* *
- - शांतनु सान्याल
 

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