12 दिसंबर, 2022

 अहाते की धूप - -

बरामदे की नरम धूप जो हम आहंग है
तुम्हारी तरह, उठ के आएं भला
कैसे उस तस्सवुर ए सुकूं से,
इक अजीब सी क़ैफ़ियत
होती है जब कभी
लौटते है हम
बंद कमरे
के अंदर
कि
हम छोड़ आए हैं कोई अनमोल लम्हा  
दर अतराफ़ तुम्हारे, हमें फ़ुर्सत
ही नहीं मिलती कम्बख़्त
इश्क़ ए जुनूं से, उठ
के आएं भला कैसे
उस तस्सवुर
ए सुकूं
से ।
यूँ तो ज़िन्दगी की त्रिकोणमिति होती
है अपने आप में उलझी हुई, फिर भी
हम ढूंढते हैं जटिल समीकरणों
का हल एक दूसरे के अंदर,
इक अदृश्य रसायन
जो जोड़े रखता
है हमारा
वजूद,
निःस्तब्ध रात के सुदूर गहन अरण्य में
टिमटिमाते हैं कुछ आस भरे जुगनू
से, हमें फ़ुर्सत ही नहीं मिलती
कम्बख़्त, इश्क़ -
ए जुनूं
से ।
* *
- - शांतनु सान्याल

8 टिप्‍पणियां:

  1. किसी की मधुर स्मृतियों के साथ जीना और उन्हें अपने भीतर जीवंत देखते रहना जीवन जीने का बहुत बड़ा संबल होता है। बरामदे की धूप में , आत्मा से लिपटी किसी बहुत खास की सुहानी यादों से संवाद करती रचना आदरनीय शान्तनु जी 🙏

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  2. यूँ तो ज़िन्दगी की त्रिकोणमिति होती
    है अपने आप में उलझी हुई, फिर भी
    हम ढूंढते हैं जटिल समीकरणों
    का हल एक दूसरे के अंदर,
    इक अदृश्य रसायन ,
    जो जोड़े रखता है हमारा वजूद//👌👌👌🙏

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार 13 दिसंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  4. ज़िन्दगी को देखने का एक अलग अंदाज । बेहतरीन

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