देह तंतुओं से हो कर उतरता है बूंद बूंद, अंतरतम
की गहराइयों तक वो अमरत्व की अनुभूति,
अपरिभाषित कोई अनुराग या मृत्यु
विहीन पुनर्जन्म, शरीर जल कर
बन जाता है सुरभित धुआं,
फ़र्श पर बिखरे पड़ी
रहती हैं केवल
श्वेत विभूति,
अंतरतम
की
गहराइयों तक वो अमरत्व की अनुभूति । अनंत
प्रणय आजन्म होते हैं निर्बंध, दैहिक अनुबंध
से मुक्त, निःशर्त भरते हैं महाशून्य की
उड़ान, पारदर्शी पंखों में लिखा
होता है जन्म जन्मांतरों
का अभियान, उन्हें
रोक नहीं पाते
हिम शिखर,
विक्षिप्त
मेघ
दल, कुहासामय रेगिस्तान, शाश्वत गर्भगृह से
जुड़ी रहती है उनकी गहन आसक्ति,
अंतरतम की गहराइयों तक वो
अमरत्व की
अनुभूति ।
- - शांतनु सान्याल
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 29 दिसंबर 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
आपका हार्दिक आभार ।
हटाएंवाह ! बहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार ।
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जवाब देंहटाएंमृत्यु विहीन पुनर्जन्म, शरीर जल कर
बन जाता है सुरभित धुआं,
फ़र्श पर बिखरे पड़ी
रहती हैं केवल
श्वेत विभूति,
अंतरतम
की
वैराग्य भाव जागृत करता बहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीय सर 🙏
आपका हार्दिक आभार ।
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार ।
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