21 दिसंबर, 2022

परिवर्तन - -

बहुत कुछ बदला है इस शहर में, हरे कपड़ों
से ढके हुए झुग्गियों के घर, ज़ेब्रा क्रॉसिंग
के दोनों किनारे झूल रहे हैं लोभनीय
विज्ञापन के आदमक़द बैनर,
चमचमाते हुए मेट्रो ट्रेन,
आधुनिक मॉल की
झिलमिलाती
सीढ़ियां,
सब्ज़
कपड़ों के नेपथ्य में ज़िन्दगी आज भी है वही,
सदियों से जिस जगह थी, बस तारीख़
बदल रहे हैं कैलेण्डर में, बहुत कुछ
बदला है इस शहर में । विकास,
विप्लव - विद्रोह, काया -
कल्प, रुपातन्तरण
सब कुछ छुपा
रहता है
सिर्फ़
काग़ज़ कलम में, वही रास्ता वही संघर्षरत -
चेहरे, वही टूटी हुई चप्पल जिसे हम
सिलवाते हैं बारम्बार, हर तरफ
हैं झूलते हुए रंगीन फीतों
से सजे हुए उपहार
के डिब्बे, जिसे
खुलते हुए
किसी
ने कभी नहीं देखा, फिर भी हर बार मंत्रमुग्ध
हो कर, अपनी उंगलियों में काला चिन्ह
लगवा कर लौट आते हैं उसी जगह
जो ढका हुआ है सब्ज़ कपड़ों
से, ताकि विदेशी मेहमान
ग़लती से न पहुंच
जाएं इस सत्य
के खंडहर
में, बहुत कुछ बदला है इस शहर में - -
* *
- - शांतनु सान्याल
 


10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 22 दिसंबर 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. अपनी उंगलियों में काला चिन्ह
    लगवा कर लौट आते हैं उसी जगह
    जो ढका हुआ है सब्ज़ कपड़ों
    से, ताकि विदेशी मेहमान
    ग़लती से न पहुंच
    जाएं इस सत्य
    के खंडहर
    में, बहुत कुछ बदला है इस शहर में - -
    वाकई बहुत कुछ बदलता है शहरों में बस नहीं बदलते वहाँ रहने वालों के हालात
    वाह!!!
    बहुत सटीक ।

    जवाब देंहटाएं
  3. एक तबके के तो बिल्कुल नहीं बदलते हालात । सामाजिक सरोकार की रचना ।

    जवाब देंहटाएं

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