28 दिसंबर, 2022

हलकी सी लकीर - -

हलकी से लकीर होती है, ज़िन्दगी और मौत के दरमियां,
उस पार है अँधेरा, इस पार पल भर की जोश ओ गर्मियां,
 
आतिश परस्त है ये जहान, नज़दीक के नदी से अनजान,
तस्वीर खींचते रहे लोग जलती रहीं फूलों से लदी वादियां,
 
उसकी मुहोब्बत ने मुझ को कहाँ से कहाँ तक पहुंचा दिया,
जिस्म ओ जां तो वही है, लेकिन लापता हो गईं परछाइयां,
 
एक आदमी जो उम्र भर, लोगों को हँसाता रहा हर क़दम पे,
छलकती आँखों को देख कर दर्शकों की बजती रही तालियां,
 
न कभी समंदर ही देखा, न ही पहाड़ों के इसरार को है जाना,
जिस्म था कि ढल गया उसी सांचे में, क्या गर्मी क्या सर्दियाँ,
 
उन उंगलियों की छुअन से यूँ ज़िन्दगी के सफ़ात  बदलते गए,
सभी चाहतें बुझते रहे अपने आप ही, मिटती रहीं परेशानियां,
* *
- - शांतनु सान्याल

11 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०१-०१-२०२३) को 'नूतन का अभिनन्दन' (चर्चा अंक-४६३२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. नव वर्ष की असंख्य शुभकामनाएं, धन्यवाद सह।

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  3. तस्वीर खींचते रहे लोग
    जलती रही फूलों से लदी वादियाँ.
    सशक्त भाव!--ब्रजेन्द्र नाथ

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  4. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ... बहुत ख्‍ाूब लिखा शांतनु जी, कि -
    एक आदमी जो उम्र भर, लोगों को हँसाता रहा हर क़दम पे,
    छलकती आँखों को देख कर दर्शकों की बजती रही तालियां

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  5. 'एक आदमी जो उम्र भर, लोगों को हँसाता रहा हर क़दम पे,
    छलकती आँखों को देख कर दर्शकों की बजती रही तालियां'- बहुत खूब भाई शान्तनु जी! सुन्दर प्रस्तुति!

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