उसे देखने के बाद कोई और चाह नहीं होती,
जब इक आग सी लगी हो सीने में आठ पहर
उसके दामन के सिवा कोई पनाह नहीं होती,
वो जो मुस्कुराते हैं, लब ऐ- राज़ छुपाये हुए
रुसवा हो ज़माना हमें कोई परवाह नहीं होती,
बहोत क़रीब से गुज़रा है वो हवाओं की तरह
दिल में सरसराहट यूँ ही, बेइन्तहा नहीं होती,
मुद्दतों से इक दर्द को बैठे हैं, हम सहलाये हुए
लोग नश्तर भी चुभोएं, तो कराह नहीं होती,
राह ए संग पे बिखरे हैं, ढेरों कांच की लकीरें
काँटों में खिलने वालों को दर्दे आह नहीं होती,
शाम ढलते ही कोई उजड़े मंदिर में दीप जलाए,
पल भर सही, ताउम्र जलने की चाह नहीं होती,
आये या फिर जाए, बादलों के
उड़ते जहान में
राह ए उल्फ़त की कोई तै शुदा राह नहीं होती ।
-- शांतनु सान्याल
-- शांतनु सान्याल
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 18 दिसम्बर 2022 को साझा की गयी है
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपका असंख्य आभार आदरणीया ।
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 18 दिसंबर 2022 को 'देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के' (चर्चा अंक 4626) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
आपका असंख्य आभार आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंराह ए संग पे बिखरे हैं, ढेरों कांच की लकीरें
जवाब देंहटाएंकाँटों में खिलने वालों को दर्दे आह नहीं होती,
शाम ढलते ही कोई उजड़े मंदिर में दीप जलाए,
पल भर सही, ताउम्र जलने की चाह नहीं होती,
.. बहुत खूब!
असंख्य आभार आपका ।
हटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअसंख्य आभार आपका ।
हटाएंशाम ढलते ही कोई उजड़े मंदिर में दीप जलाए,
जवाब देंहटाएंपल भर सही, ताउम्र जलने की चाह नहीं होती,///
बहुत ही भावपूर्ण शेरों से सजी रचना शान्तनु जी।खूब सजाई भी है।
असंख्य आभार आपका ।
हटाएंशाम ढलते ही कोई उजड़े मंदिर में दीप जलाए,
जवाब देंहटाएंपल भर सही, ताउम्र जलने की चाह नहीं होती,///
बहुत ही भावपूर्ण शेरों से सजी रचना शान्तनु जी।खूब सजाई भी है।
Very Nice your all post, I Love it
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असंख्य आभार आपका ।
हटाएंपल भर सही, ताउम्र जलने की चाह नहीं होती
जवाब देंहटाएंवाह!!!
बहुत सुन्दर ...
लाजवाब गजल।
असंख्य आभार आपका ।
हटाएंराह ए संग पे बिखरे हैं, ढेरों कांच की लकीरें
जवाब देंहटाएंकाँटों में खिलने वालों को दर्दे आह नहीं होती,
शाम ढलते ही कोई उजड़े मंदिर में दीप जलाए,
पल भर सही, ताउम्र जलने की चाह नहीं होती,
अति सुंदर ।
असंख्य आभार आपका ।
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