17 दिसंबर, 2022

ग़ज़ल - -

उस निगाह के बाद, कोई  निगाह नहीं होती
उसे देखने के बाद कोई और चाह नहीं होती,
जब इक आग सी लगी हो सीने में आठ पहर
उसके दामन के  सिवा कोई पनाह नहीं होती,
वो जो मुस्कुराते हैं, लब ऐ- राज़ छुपाये हुए
रुसवा हो ज़माना हमें कोई परवाह नहीं होती,
बहोत क़रीब से गुज़रा है वो हवाओं की तरह
दिल में सरसराहट यूँ ही, बेइन्तहा  नहीं होती,
मुद्दतों से इक दर्द को बैठे हैं, हम सहलाये हुए
लोग नश्तर भी चुभोएं, तो  कराह  नहीं होती,
राह ए  संग पे बिखरे हैं, ढेरों कांच की लकीरें
काँटों में खिलने वालों को दर्दे आह नहीं होती,
शाम ढलते ही कोई उजड़े मंदिर में दीप जलाए,
पल भर सही, ताउम्र जलने की चाह नहीं होती,
आये या फिर जाए, बादलों के
 उड़ते जहान में
राह ए उल्फ़त की कोई तै शुदा राह नहीं होती ।
-- शांतनु सान्याल

17 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 18 दिसम्बर 2022 को साझा की गयी है
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 18 दिसंबर 2022 को 'देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के' (चर्चा अंक 4626) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

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  3. राह ए संग पे बिखरे हैं, ढेरों कांच की लकीरें
    काँटों में खिलने वालों को दर्दे आह नहीं होती,
    शाम ढलते ही कोई उजड़े मंदिर में दीप जलाए,
    पल भर सही, ताउम्र जलने की चाह नहीं होती,
    .. बहुत खूब!

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  4. शाम ढलते ही कोई उजड़े मंदिर में दीप जलाए,
    पल भर सही, ताउम्र जलने की चाह नहीं होती,///
    बहुत ही भावपूर्ण शेरों से सजी रचना शान्तनु जी।खूब सजाई भी है।

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  5. शाम ढलते ही कोई उजड़े मंदिर में दीप जलाए,
    पल भर सही, ताउम्र जलने की चाह नहीं होती,///
    बहुत ही भावपूर्ण शेरों से सजी रचना शान्तनु जी।खूब सजाई भी है।

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  6. Very Nice your all post, I Love it

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  7. पल भर सही, ताउम्र जलने की चाह नहीं होती
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर ...
    लाजवाब गजल।

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  8. राह ए संग पे बिखरे हैं, ढेरों कांच की लकीरें
    काँटों में खिलने वालों को दर्दे आह नहीं होती,
    शाम ढलते ही कोई उजड़े मंदिर में दीप जलाए,
    पल भर सही, ताउम्र जलने की चाह नहीं होती,
    अति सुंदर ।

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