कड़ुए सत्य को हलक के नीचे उतारना सहज
नहीं, स्याह परछाइयों के नीचे दबा रहता
स्व - संघर्ष का इतिहास, पाप - पुण्य
के मध्य जीवन, झूलता रहता
है उम्र भर, किसी बंद
स्नानागार का
आइना जो
देखता
है सारे उन्मुक्त देह को गहराई से, हालांकि
हमें लगता हैं कि हमारे सिवा वहां कोई
नहीं, उन घनीभूत पलों में कोई
अदृश्य नेत्र मांगता है हम
से हमारा ही हिसाब,
हम छुपाना
चाहते है
तब
अपने रक्तिम नख उंगलियों के अंदर किंतु
रहते हैं विफल, इक ख़ामोश तरंगित
आवाज़ गूंजती रहती है हमारे
आसपास, स्याह परछाइयों
के नीचे दबा रहता
स्व - संघर्ष का
इतिहास ।
* *
- - शांतनु सान्याल
10 दिसंबर, 2022
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 11 दिसम्बर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपका हृदय से आभार, नमन सह ।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 11 दिसम्बर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 11 दिसम्बर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअसंख्य आभार आपका।
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