04 दिसंबर, 2022

अंतरतम का प्रवास - -

 
असमाप्त ही रहता है अन्तरतम का प्रवास,
रास्ते के पड़ाव, ख़ामोशी से देखते रहते
हैं दृश्यों का बदलाव, हर एक मोड़
पर ज़िन्दगी बदल जाती है
अपना बहाव, समय
मोड़ लेता है वजूद
अपने शर्तों पर,
हम चाह कर
भी रहते
हैं असहाय, शून्यता के सिवाय कुछ भी नहीं
रहता हमारे पास, असमाप्त ही रहता है
अंतरतम का प्रवास । कभी कभी जान
बूझ कर हम हार जाते हैं अपना
दांव, किसी और के चेहरे में
खोजते हैं राहत भरी
छांव, दरअसल
हम चाहते
हैं उस
का
प्यार बेपनाह, उसे परिपूर्ण पाने के लिए हम
हो जाते हैं लापरवाह, कोई हमारी छोटी
मोटी ग़लतियों पर झिड़के, रोके टोके,
हम जाने अनजाने में बढ़ा जाते
हैं उसकी गहरी चाह, उसे
निकट से निकटतम
लाने का होता
है असल में
एक मधुर
प्रयास,
असमाप्त ही रहता है अंतरतम का प्रयास ।
फिर भी बनी रहनी चाहिए ज़िन्दगी में
परिपूर्ण जीने की अतृप्त प्यास ।
* *
- - शांतनु सान्याल


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