18 दिसंबर, 2022

अंजामे मसीहाई - -

हर कोई है गुम अपने भीतर ख़ामोश  तमाशाई,
उम्र की  ढलान को जाने कब लांघ गई परछाई,

दरख़्त था या इस शहर का वो क़दीम बासिन्दा,
किसे नही पता कि यहां आग किसने थी लगाई,

अजीब है ये दुनिया, झूठ पर बजती हैं तालियां,
ख़ुदकुशी किया करती है रोज़ आईने की तन्हाई,

बाम ओ दर पे बेकार खोजता हूँ सच का दीपक,
अपने से  ही फ़ुरसत नहीं, कौन सोचे पीड़ पराई,

इक पागल है जो मुर्रवत का परचम लिए बैठा है
जिसे देख लोग हँसते हैं यही है अंजामे मसीहाई,

इक सड़क जो दूर तक जाती है जलती हुई तन्हा,
ज़मीं से क्या गरज, जब उड़ने की क़सम है खाई,
* *
- - शांतनु सान्याल

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