स्वप्न विक्रेता, उस किशोर फेरीवाला के
आँखों में पढ़ना चाहता हूँ मैं, भविष्य
की सम्भावनाएं, शब्दों के पद
चिन्ह, लेकिन ले जाते हैं
मुझे बहुत दूर, जहाँ
ऊसर भूमि के
सीने पर
उगी
हुई हैं नागफनी की शुभकामनाएं । आठ
रस्ता चौक में जब होता है ट्रैफ़िक
जाम, रंगीन चश्में के उस
पार देखता हूँ मैं, एक
धूसर शैशव, जो
बेच रहा है
नक़ली
फूलों
के गुच्छे, उसके बेतरतीब बालों के जटों
में, विलुप्त से हैं जीवन के सभी
परिभाषाएं, ऊसर भूमि के
सीने पर उगी हुई हैं
नागफनी की
शुभ -
कामनाएं । फुटपाथ पर चल रहा हूँ मैं, -
मध्य सड़क के ऊपर गुज़र रही
है प्रायः ख़ाली मेट्रो रेल,
उसके बहुत ऊपर
से गुज़र रहा है
कोई विदेश -
गामी
विशाल विमान, इन तीन स्तरों में बहुत -
कुछ है, फिर भी कुछ लोग, अभी
तक तलाश रहे हैं अपना
एक अदद निवास -
स्थान, अपने
ही देश में
वो हो
चुके हैं अनजान, सोचता हूँ मैं उन वंचित
चेहरों को क्या कभी मिल सकेगा, इक
निरापद भविष्य का वरदान, लौट
आता हूँ मैं अपने अंदर, ले
कर सजल भावनाएं,
ऊसर भूमि के
सीने पर
उगी
हुई हैं नागफनी की शुभकामनाएं - - - -
* *
- - शांतनु सान्याल
16 दिसंबर, 2022
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