कोई नहीं जानता, क्या वे प्रमाण करना
चाहते हैं, किस देवता के सत्ता पर
है उन्हें विश्वास, या केवल
झूठी आत्म गौरव के
लिए असामयिक
प्रलय की
ओर
हैं अग्रसर, न जाने कौन सा भ्रमित - -
विचारधारा, उन्हें विषाक्त पथ
की ओर लिए जा रही है,
ये उनका है अदृश्य
आत्मघाती
सफ़र !
ये
बहुत आसान है कि जीत लें हम ज़मीं के
चंद टुकड़े, लेकिन दिलों को जीतना
बच्चों का खेल नहीं, मालूम
नहीं क्यों ये पहनना
चाहते हैं नर -
मुंडों की
माला,
ये
कैसा पंथ है जो लिखता है मासूमों के
ख़ून से विजय गाथा, परिवर्तन
को जो समाज ठुकराता है
वही असमय धूल में
मिल जाता है,
ये भ्रम
कि
कोई स्वर्ग है प्रतीक्षारत धर्म योद्धाओं
के लिए, न ले जाए इन्हें रसातल
में, वही पंथ पायेगा अमरत्व
जो मानवता का होगा
सच्चा रखवाला,
ऐसा स्वर्ग
बेमानी
है
जिसकी बुनियाद में हो, निरीह लोगों
के ख़ून से सने हुए ईंट ओ पत्थर,
ये उनका है अदृश्य
आत्मघाती
सफ़र - -
* *
- - शांतनु सान्याल
31 अक्तूबर, 2020
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सुन्दर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह ।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 01 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह ।
जवाब देंहटाएंवाह-वाह।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
हार्दिक आभार - - नमन सह ।
हटाएंबेहतरीन।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह ।
हटाएंबेहतरीन सर हमेशा की तरह।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर और मानवता को सबल बनाने हेतु चिंतन को प्रेरित करती भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएं