11 अक्तूबर, 2020

शाश्वत अर्घ्य - -

बहुत कुछ रहता है अप्रकाशित
आंखों के नेपथ्य में, वृथा ही
डूबोते हैं हाथ अपना
अंधेरे के तल घर
में, कुछ भी
नहीं
होता गुप्त दर्पण के नग्न सत्य
में, वो ढूंढते हैं एक सौ आठ
पद्म, देवी के श्रृंगार के
लिए, एक मूठ
अन्न का
दान
ही काफ़ी है किसी क्षुधित शिशु
के जीवन अर्घ्य में, कितना
भी ऊंचा कर जाएं
देवालय का
शिखर,
छू
न पाएगा दिव्य सोपान, ग़र -
पुरोहित की नज़र में उच्च
नीच का हो असर,
राख़ से अधिक
कुछ न
होगा
अवशेष, उसके धार्मिक सभी
कृत्य में, बहुत कुछ रहता
है अप्रकाशित आंखों
के नेपथ्य
में।

* *
- - शांतनु सान्याल


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