कितने दिनों बाद ख़ुद से मुलाक़ात हुई,
चुप्पी सी रही दूर तक, दीवारों के पार,
बस देखता रहा, ज़रा सी न बात हुई।
अक्स था मेरा, या बेकरां ख़ामोशी - -
धुंआ सा, उठ रहा है, वादी ए ख़ाक में,
शायद मकां जलने के बाद बरसात हुई।
सुबह से शाम तक, उजालों ने है लूटा,
झुलसे हुए वजूद के सिवा कुछ भी नहीं,
जिस्म को जलाती हुई चाँदनी रात हुई।
वक़्त का तक़ाज़ा, जाने कहाँ जा रुके,
नंगे पाँव, चल रहे हैं राह ए आतिश पे,
उफ़क़ पार कितनी हंसीं कायनात हुई,
कितने दिनों बाद ख़ुद से मुलाक़ात हुई।
* *
- - शांतनु सान्याल
चुप्पी सी रही दूर तक, दीवारों के पार,
बस देखता रहा, ज़रा सी न बात हुई।
अक्स था मेरा, या बेकरां ख़ामोशी - -
धुंआ सा, उठ रहा है, वादी ए ख़ाक में,
शायद मकां जलने के बाद बरसात हुई।
सुबह से शाम तक, उजालों ने है लूटा,
झुलसे हुए वजूद के सिवा कुछ भी नहीं,
जिस्म को जलाती हुई चाँदनी रात हुई।
वक़्त का तक़ाज़ा, जाने कहाँ जा रुके,
नंगे पाँव, चल रहे हैं राह ए आतिश पे,
उफ़क़ पार कितनी हंसीं कायनात हुई,
कितने दिनों बाद ख़ुद से मुलाक़ात हुई।
* *
- - शांतनु सान्याल
सुन्दर
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद - - नमन सह।
हटाएं