06 अक्तूबर, 2020

स्वर्ग का आसमान - -

अभी कहाँ थमा है za का समर,
शंख, तुरही, मृदंग सभी हैं केवल
कुछ प्रहरों के उल्लास, जहाँ
तुम्हारा खींचा गया
लज्जा वसन,
वहीं पर है
मौजूद
अग्नि
कुंड का निःश्वास। न कोई पार्थ न कोई
पार्थ सारथी, इस धरा के वक्ष में
आज भी हैं भूमिगत अनल
प्रवाह, अग्नि स्नान ही
आख़री शस्त्र है
तुम्हारे हाथ,
दूर तक
कोई
नहीं है उद्धारक तुम्हारा, तुम्हें रखना है
प्रज्वलित भस्म अपने माथ। अभी
तक है सड़ा गला, वही अपघटित  
जंग लगा अभिज्ञान, तुम्हारे
अस्थि पिंजर के गर्भ -
गृह में है लुप्त
नव युग
का
आह्वान, तुम्हारे पैरों तले है स्वर्ग का
आसमान।
* *
- - शांतनु सान्याल
 
 

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