05 अक्तूबर, 2020

झरते अमलतास - -

इसी मोड़ पर कहीं खो गई गुलमोहरी
साँझ, इसी धुंधलके में कहीं छूट
गया अपनों का हाथ, फिर
भी ज़िन्दगी करती है
अथक तलाश,
बुझ जाएं
तो बुझ
जाएँ, तुम्हारे शहर के सभी कृत्रिम - -
प्रकाश, अंतरतम के द्वीपों में
जीवित हैं अभी तक, कुछ
जुगनुओं के जलते -
बुझते हुए -
प्रभास,
ढलती धूप के पास वसीयत के लिए -
कुछ भी नहीं, अतीत के पृष्ठों
में हैं बंद, पानी जहाज़ के
सीने से उठता हुआ
धुंआ, और
आकाश
से
झरता हुआ अमलतास, यूँ भी आते
जाते मुट्ठी खुली ही रहती है, ये
और बात है कि तुमने मुझे
जकड़ रखा है, बहुत ही
नज़दीक, अपने
दिल के
पास,
लौट के कोई आए या न आए किसी
को कुछ भी फ़र्क़ नहीं पड़ता, वही
आदिमयुगीन ध्रुव तारा, वही
ज़िन्दगी का अंतहीन
उत्तरी आकाश ।
* *
- - शांतनु सान्याल   
 




 




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अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past