25 अक्तूबर, 2020

तमसो मा ज्योतिर्गमय - -

नक्षत्रों का महोत्सव ख़त्म हो चुका,
छायापथ में खो गए सभी जाने
अनजाने तारों के उजाले,
दिगंत की दहलीज़
में कौन देता
है जीर्ण
हाथों
से दस्तक, फूटते भी नहीं क्यों - -
मेरी ओंठों से दग्ध शब्दों के
छाले, मैं बारहा चाहता
हूँ कि तुम्हें गहरी
नींद आए, न
देख पाओ
तुम
धूसर आकाश का फीकापन, टूट
जाएँ सभी मेघदर्पण, लेकिन
तुम्हारी ज़िद के आगे
पराजित हैं सभी
दक्ष के आहुति
अगन, तुम
हर हाल
में
लौट आती हो जीवन यज्ञ के - -
हवाले, बारम्बार तुम्हारा
नव सृजन, बारम्बार
जल विसर्जन,
फिर भी
तुम
कहती हो " असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मामृतं गमय ॥"

* *
- - शांतनु सान्याल
   


 
 

14 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. हार्दिक आभार - - विजयादशमी की असंख्य शुभकामनाएं - - नमन सह।

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  2. उत्तर
    1. आपका " वाह " शब्द मेरे लिए बहुत मायने रखता है - - विजयादशमी की असंख्य शुभकामनाएं - - नमन सह।

      हटाएं
  3. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-10-2020 ) को "तमसो मा ज्योतिर्गमय "(चर्चा अंक- 3867) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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  4. बारम्बार तुम्हारा
    नव सृजन, बारम्बार
    जल विसर्जन,
    फिर भी
    तुम कहती हो
    " असतो मा सद्गमय।
    तमसो मा ज्योतिर्गमय।
    मृत्योर्मामृतं गमय ॥"
    अभिभूत करती अनुपम कृति ।

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