11 अक्तूबर, 2020

काश कुछ पल और ठहरते - -

अभी तक है गहन अंधकार, कुछ शून्य
आँखों के निःशब्द आविष्कार, अभी
भी बहुत कुछ कहना है बाक़ी,
मायावी रात की कितनी
अनकही गल्प -
कहानी,
कुछ नग्न सत्य के उपसंहार, अभी तक
है गहन अंधकार। अभी तक हो तुम
विभ्रांत, अंतःस्थल का ठिकाना
अब तक तुम नहीं खोज
पाए, बहुत दूर है
तुम से
आलोकित प्रणय संसार, अभी तक
है केवल अंध स्पर्श की अनुभूति,  
अभी तक नहीं खुली है अंदर
की जड़ता, सीने के
बहुत भीतर
मौजूद
हैं
भष्मीभूत अग्नि का दमित हाहाकार,
अभी तक है गहन अंधकार। अभी
तक तुम आत्मसात हो न
पाए, इसलिए बुझ
चले हो अंतिम
प्रहर से
पहले,
छोड़ चले हो अकारण ही कुछ धुएं के
मेघ, कुछ धुंधले क्षितिजों के
अतिरिक्त भार, अभी
तक है दूर तक  
अंतहीन
अंधकार।

* *
- - शांतनु सान्याल  


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