02 अक्तूबर, 2020

मसीहा का पता - -

कुछ धुंधले तारे आँखों में कहीं
डूब गए, कुछ थे नसीब -
वाले उन्हें मनचाहा
आकाश मिल
गया, इक
चुप्पी
सी रही दूर तक जब मैंने चाहा
उन्मुक्त हो कर जीना, सभी
दौड़ आए ले के दवा के
नाम पर नमक की
पुड़िया, शायद
उन्हें मेरे
गहरे
ज़ख़्म का एहसास मिल गया।
खड़ा हूँ मैं दरवाज़े पर पुनः
उनके, सवालों की लम्बी
फ़ेहरिस्त लिए हुए,
फिर वो हैं तैयार
छद्मवेश में,
मायावी
राहतों
के किश्त लिए हुए । अभिशप्त
पत्थरों के शहर में किसी
मसीहा का मिलना
मुश्किल है, घुन
लगे सिंह -
द्वार
के अंतःपुर में, हर एक चीज़ पर
है दाम्भिक ज़ंग का असर,  
शीशे के जिस्म को
निष्पक्ष इंसाफ़
मिलना
मुश्किल है, जो दे जाए जीने का
एक मुश्त अधिकार ऐसे
मसीहा का मिलना
मुश्किल
है।  
* *
- - शांतनु सान्याल









 

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 03 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. नमक की
    पुड़िया, शायद
    उन्हें मेरे
    गहरे
    ज़ख़्म का एहसास मिल गया।
    बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं

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