30 अक्तूबर, 2020

शीर्षक विहीन - -

सभी पल थे ख़ूबसूरत, सभी गीत में थी
ज़िंदगानी, कुछ लोग हासिए में थे
खड़े, कुछ बिखरे पड़े थे फ़र्श
में बेतरतीब अधफटे -
हुए रंगीन काग़ज़,
उपहारों की
भीड़ में
कहीं
गुम थी, जन्म दिन की कहानी, सभी -
पल थे ख़ूबसूरत, सभी गीत में थी
ज़िंदगानी। न जाने क्या लिखा
था, उस समाधि स्तम्भ
के सीने में, वक़्त
की काई ने
बदल
कर
रख दिया उसका तर्जुमा, वो शख़्स जो
सितारों की तरह दिखाता था, सभी
को सुबह का रास्ता, तक़दीर
का सितारा कुछ इस
इस तरह से डूबा
कि वही आज
पूछता है
अपने
गुमशुदा घर का पता, बावन पत्तों से
बना है शीर्षक का घर, बहुत ही
नाज़ुक, ज़रा सी छुअन
ही काफ़ी है, शब्दों
के बिखराव
के लिए,
मेरा
गुनाह क्या है किसी को कुछ भी नहीं
मालूम, फिर भी लोग चल पड़े
हैं, आँख मूँद के पथराव के
लिए, ज़रा सी छुअन
ही काफ़ी है, शब्दों
के बिखराव
के लिए।

* *
- - शांतनु सान्याल  

 





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