कौन असली है और कौन नक़ली, कहना
है बहुत मुश्किल, सभी जैसे फ़रेब
की दुकान लिए बैठे हैं, ऊँची
आवाज़ वाला गधे को
घोड़ा बता के बेच
गया, और
घोड़ा
वाला देखता ही रह गया, कहाँ है चतुर्थ
स्तम्भ कोई मुझे दिखाए, कोहरा है
घना, न सीढ़ियां नज़र आती हैं
न ही छत, किस मुंडेर पर
दुबका हुआ है प्रजा -
तंत्र, ज़रा मुझे
भी कोई
दिखाए, हर तरफ़ है नीलामी का जूनून -
लेकिन देशभक्ति का मुल्लमा है
ज़बरदस्त, चिल्ला चिल्ला
कर लोग दिखा रहे हैं
अपनी तथा -
कथित
वफ़ादारी का सबूत, इस गोरखधंधे में है
सभी लिप्त, सर्वोच्च दंडनायक हों,
या मोहल्ले का एक पसली
दबंग, हर कोई बन
चला है समाज -
सुधारक,
अब
कहाँ से लाएं अष्टमुखी अंकुश, लोग - -
चले जा रहे हैं न जाने कहाँ, झुकी
कमर लिए हुए, शहर - दर -
शहर, सतत पलायन,
वही आदिम -
युगीन
ख़ानाबदोश की तरह जीने की मज़बूरी।
* *
- - शांतनु सान्याल
09 अक्तूबर, 2020
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सुन्दर
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१०-१०-२०२०) को 'सबके साथ विकास' (चर्चा अंक-३८५०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
असंख्य धन्यवाद - - नमन सह।
हटाएंशानदार अद्भुत
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद - - नमन सह।
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