13 अक्तूबर, 2020

जन्म से पूर्व और जन्म के बाद भी - -

वृष्टि थमते ही फिर मुखर है कोलाहल,
अस्फुट शब्दों का अर्थ मैं खोजता
हूँ, तुम्हारे स्पंदन में, कुछ
उष्ण बूंदें जो तुम्हारी
पलकों से टूट
कर, रुकी
सी हैं
कहीं मेरे कांधे के हाड़ पर, न जाने क्या
रहस्य है, इस आबद्ध क्रंदन में,
अस्फुट शब्दों का अर्थ मैं
खोजता हूँ, तुम्हारे
स्पंदन में।
न जाने
क्या
ढूंढते हैं सर्दियों की छुईमुई धूप में वो -
बेकल आँखें, तमाम रात यूँ तो
सुलगता रहता है, सीने के
अंदर, कोई मंथर वेग
से मधुर अलाव,
जन्म से
पूर्व
और जन्म के बाद भी जिसे पाने की हो
अंतहीन अभिलाष, शब्दों से मुक्त,
व्याकरण विहीन है वो प्राणों
का लगाव, सुलगता
रहता है, सीने के
अंदर, कोई
मंथर
वेग से मधुर अलाव।

* *
- - शांतनु सान्याल
 


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