20 अक्तूबर, 2020

कहाँ है जलप्रदेश - -

सिमटा हुआ है नदी का किनारा, बालुओं
के बहुत अंदर हैं जल प्रदेश, अभी है
मध्य रात्रि का उफान, सुदूर
उपनगर में, किसी जन -
शून्य, प्लेटफॉर्म
में बैठा हुआ
है कोई
मासूम बेचारा, सिमटा हुआ है नदी का
किनारा। ज़िन्दगी अपने आप में
ख़ुद को समेटती है, क़रीब
ही कुंडली मार के सो
रहा है, रोआं
विहीन
श्वान, प्रहरी की नज़र में है आश्रय देने
का सशर्त चारा, मौन महसूल की
अदायगी, ज़िन्दगी खोजती
है बचने के रास्ते, टूटी
पसलियां, भंग मेरु
दंड लिए स्वप्न
खोजते हैं
चिल्लर
पैसों की तरह बिखरे हुए कुछ चांदनी के
कण, ऊंघती हुई लहूलुहान ज़िन्दगी
देखती है, पूर्व दिशा से आती
हुई द्रुतगामी रेलगाड़ी,
आकाश अभी है
भस्मरंगी,
सूर्य
को जागने में है देरी, श्वान एक आंख से
दे रहा है पहरेदारी, उम्मीद विध्वस्त
नहीं होती, क्या हुआ कि जीवन
है अभी सर्वहारा, सिमटा
हुआ है नदी का
किनारा !

* *
- - शांतनु सान्याल

 
 

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