19 अक्तूबर, 2020

शाश्वत प्रकाश - -

 

वो लुप्त है अंतर्मन में कहीं और नयन -
खोजें उसे धुंध भरी राहों में, एक
मृगजल है; मेरी अंतहीन
अभिलाषा, सब कुछ
है आसपास
लेकिन
ह्रदय ढूंढ़े उसे धूमिल अरण्य के बीच, न
अदृश्य, न ही उजागर वो है हर
सांस के लेखाचित्र में
निहित, केवल
चाहिए
स्व प्रतिबिम्ब का गहन अवलोकन, वो
चेतना जो पढ़ पाए व्यथित मन
की भाषा, जो हो घुलनशील
हर चेहरे के ख़ुशी
और दुःख
में डूब कर, जीवन चाहे वो शाश्वत - -
सत्य का प्रकाश, जो दे जाए
चिरस्थायी दीप्ति,
अंतर तमस
पाए -
अनंतकालीन मुक्ति, जन्म जन्मान्तर
से परिपूर्ण मोक्ष प्राप्ति - -
* *
- शांतनु सान्याल

10 टिप्‍पणियां:

  1. और दुःख
    में डूब कर, जीवन चाहे वो शाश्वत - -
    सत्य का प्रकाश, जो दे जाए
    चिरस्थायी दीप्ति,
    अंतर तमस
    पाए -
    अनंतकालीन मुक्ति, जन्म जन्मान्तर
    से परिपूर्ण मोक्ष प्राप्ति -,,,,, बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण रचना,

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 20 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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