18 अक्तूबर, 2020

जीवन का अनुक्रम - -

 

मुझे तुम चाह कर भी क़रीब ला न सकोगे,
उस सुनहरे चतुष्कोणीय फ्रेम में ढाई
शब्द को बिठाना आसान नहीं,
हर एक कोण में छुपी है
वास्तविकता की
कील, देखने
में वो
शब्द हैं बहुत ख़ूबसूरत, छूना चाहोगे भी  -
अगर, उस अतल तक पहुंच न
पाओगे, मुझे तुम चाह कर
भी अपने क़रीब ला न
सकोगे। हदे नज़र
तक मैंने देखा
है उसे लौट
जाते,
वो शायद हसीन गुज़रा हुआ वक़्त था - -
मेरा, एक बार भी मुड़ कर न देखा
मुझे, ज़िन्दगी किसी विदूषक
से कम नहीं, आँखों की
नमी देख कर भी
लोगों की
हंसी
न थमी, बारिश में भीगता रहा देर तक, -
उसके अलावा न था वहां कोई। इस
दुनिया में शायद मैं ही नहीं
एक व्यतिक्रम, हालात
के हाथों न जाने
कितने बन
जाते
हैं विषम, धूप छाँव के बीच ऊपर नीचे -
चलता रहता है, जीवन का
अनुक्रम।

* *
- - शांतनु सान्याल

 
 
 
 

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