कमज़ोरी ग़र ज़ाहिर हो जाए तो 
ज़माने को खिलौना मिल 
जाएगा, लाज़िम था 
अंधेरे से निकल 
कर उजाले 
में खुल 
के 
सांस लेना, उसकी हँसी में तंज़ 
था, मधु में नीम घुली हुई,
धीरे - धीरे हमने भी 
आख़िर सीख ही 
लिया, मीठी 
ज़बान को 
बोलने 
की 
अदा, चाँदनी में धुली हुई, न 
इस में कोई जीत है न 
ही कोई हार, हर 
एक का है ये 
पैदाइश 
हक़ 
कि उसे जीने का मौक़ा मिले,
कौन नहीं चाहेगा खुली 
हवाओं में पुरसुकूं 
जीवन जीना,
ज़रूरी है 
उसे 
एक मुश्त रौशनी के लिए एक 
अदद झरोखा मिले, 
दोबारा उसे जीने 
का मौक़ा 
मिले। 
* * 
- - शांतनु सान्याल  
  
03 दिसंबर, 2020
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वाह
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंवाह! शानदार विसंगति मधु में नीम घुला .. सच तंज चाहे मुस्कराहट के पीछे छिपा हो अपनी खराश छोड़ता जरूर है।
जवाब देंहटाएंलाजवाब।
हृदय तल से आपका आभार - - नमन सह।
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