03 दिसंबर, 2020

आर्द्र तृष्णा - -

उलझी हुई है ज़िन्दगी कई अदृश्य
कोणों में, बेहतर है इसी में
कि कोई जवाब न
मांगा जाए,
जब
कभी चाहा उसे समझना, हर एक
मोड़ पर, वो सवाल बदलती
चली गई, कोई भी पल
परिपूर्ण नहीं, न
जाने किस
बात
की है दिल में दहशत, अबेकस पे
थी मेरी उंगलियां, रंगीन
मनकों को गिनते -
गिनते मायावी
रात ढलती
चली
गई, हर एक मोड़ पर, वो सवाल
बदलती चली गई। सर्दियों
की धूप की तरह पहलू
बदलती रही, मेरे
अंदर की
नदी,
सागर की प्यास सिर्फ़ पृथ्वी को
है पता, मुहाने पर आ कर
नदी, करवट बदलती
चली गई, हर
एक मोड़
पर,
वो सवाल बदलती चली गई। - -

* *
- - शांतनु सान्याल


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