गुज़र रहा है शहर के वक्ष से होकर
विस्तीर्ण विजय जुलूस, सहस्त्र
घुड़सवार, ढोल ताशे, शंख
तुरही, आकाश से झर
रही है मोनालिसा
की वही
चिर
परिचित रहस्यभरी मुस्कान, राज
पथ के दोनों तरफ खड़े हैं
लोग बैसाखियों के
सहारे, ख़ामोश
विस्फारित
नज़रों
से
देखते हैं शाही रथ का महाप्रस्थान।
खोजते हैं लोग पिछले पहर के
कुछ चिल्लर ख़्वाब, रास्ते
के बीचों -बीच बिखरे
पड़े हैं, केवल कुछ
बलैयां और
कुछ
निछावर के अभिमान, अपाहिज
रात देख रही है, मोनालिसा
की वही, चिर परिचित
तिलस्मी मुस्कान।
नगर सीमान्त
पर रोके
गए
हैं, ज़मीन से उठने वाले आवाज़,
इस मुल्क का क़ानून बदलता
है अंकों के खेल से, सुबह
कुछ और ही था मेरा
परिचय उनकी
नज़र में,
साँझ
ढलते ही मुझ पर है अब क़त्ल
का फ़रमान, विस्फारित
नज़रों से मैं देखता
रहा, शाही रथ
का महा -
प्रस्थान।
* *
- - शांतनु सान्याल
22 दिसंबर, 2020
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वाह
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएं
जवाब देंहटाएंज़मीन से उठने वाले आवाज़,
इस मुल्क का क़ानून बदलता
है अंकों के खेल से, सुबह
कुछ और ही था मेरा
परिचय उनकी
नज़र में,
साँझ
ढलते ही मुझ पर है अब क़त्ल
का फ़रमान, सशक्त रचना..
तहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंलाजवाब
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (23-12-2020) को "शीतल-शीतल भोर है, शीतल ही है शाम" (चर्चा अंक-3924) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
तहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंवाह!लाजवाब सर।
जवाब देंहटाएंक्या ख़ूब शब्द चित्र उकेरा है वर्तमान का।
सादर
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंवाह !!बहुत खूब,लाजबाब सृजन,सादर नमन सर
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंसच कहा आपने सत्यता अंकों का खेल ही है सभी संवेदनाओं से दूर । बहुत सुंदर रचना हर शब्द कुछ कह रहा है।
जवाब देंहटाएंसत्यता को सत्ता पढ़ें कृपया।🙏
हटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
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