27 दिसंबर, 2020

उजाले के कगार - -

अंतिम पहर में थम गए सभी कायिक
उफान, बहुत अनिश्चित होता है
चाहतों का निद्राचलन, देह
और प्राण के मध्य
निरंतर चलता
रहता है
एक
असमाप्त खींचतान, अंतिम पहर में
थम गए सभी कायिक उफान।  
बिखरे पड़े होते हैं, छिन्न -
भिन्न नीतिशास्त्र के
किताब, उन
एकांत
पलों
का साक्ष्य होता है सघन नील अंधकार,
उजाले के महीन परदे, क्रमशः खोल
देते हैं, पिछले पहर के सभी
गुप्त अभियान, अंतिम
पहर में थम गए
सभी कायिक
उफान।
वो
पल जो जन्म देते हैं भावी संभावना
को, स्पर्श जो गढ़ते हैं अजस्र
चेतना को, उन निशब्द
संवाद के नेपथ्य में
होती है स्निग्ध  
शांति, बहुधा  
दिशा बदल
जातें हैं
सभी
विक्षिप्त तूफ़ान, अंतिम पहर में - -
थम गए सभी कायिक
उफान।

* *    
- - शांतनु सान्याल

 

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 27 दिसंबर  2020 को साझा की गई है....  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. उजाले के महीन परदे, क्रमशः खोल
    देते हैं, पिछले पहर के सभी
    गुप्त अभियान, अंतिम
    पहर में थम गए
    सभी कायिक
    उफान।..सुंदर सारगर्भित रचना..।

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