उन निःस्तब्ध पलों में हमने बोया
था कुछ सपनों के बीज, कुछ
असमय ही कुम्हलाए,
कुछ रहे सीने के
अंदर आंशिक
अंकुरित,
उन्ही
बीजों से शून्य में उभरते हैं छाया -
पथ, मध्य रात्रि में होती हैं
असंख्य उल्कापात,
पिरामिड के
शीर्ष में
जीवन
पुनः गढ़ता है, शून्यता का निर्भूल
रेखा गणित, कुछ स्वप्न रहे
सीने के अंदर आंशिक
अंकुरित। मेघ के
नेपथ्य से
उड़
चला है किसी और अज्ञात नगर
की ओर, रास पूर्णिमा का चाँद,
देह कदम्ब से झर चले हैं,
पीत वर्णीं पात, सब
साज - श्रृंगार
बिखरे
हुए
हैं बेतरतीब, न जाने कौन चला
गया एक शून्यता छोड़ कर,
अंतिम प्रहर भी है कुछ
सहमा हुआ और
स्तम्भित,
जीवन
पुनः
गढ़ता है, शून्यता का निर्भूल - -
रेखा गणित - -
* *
- - शांतनु सान्याल
01 दिसंबर, 2020
शून्यता की गहराई - -
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बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
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