हमेशा की तरह, ये साल भी आख़िर 
गुज़र ही गया, अंजुरी से बह कर 
एक सजल अहसास, कोहनी 
के रास्ते, स्मृति स्रोत 
में कहीं, निःशब्द 
सा उतर ही 
गया, 
ये साल भी आख़िर गुज़र ही गया।
हाथों की मुट्ठियां खुली ही रहीं, 
हमेशा की तरह, आकाश 
इठलाता रहा शाही -
अभिमान से,
असमय 
के 
प्रहार से बदल गए सभी धर्म कर्म 
के पैमाने, सर्वव्यापी सत्य का 
धुआं उठता रहा शमशान 
से, अहंकार का घट 
अंततः, टूट कर 
बिखर ही 
गया,
ये साल भी आख़िर गुज़र ही गया।
अपने अक्ष में अनवरत घूमता 
रहा, समय का अदृश्य 
दर्पण, कोलाहल 
हो या गहरा 
अमन, 
संघर्ष का दूसरा नाम ही है जीवन, 
जीने की अंतहीन चाह थी 
मेरी परछाई, मेरे साथ 
ही रही, मैं चाहे 
जिधर भी 
गया,
ये साल भी आख़िर गुज़र ही गया।
* * 
- - शांतनु सान्याल 
 
 
27 दिसंबर, 2020
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जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंबहुत बढ़िया भावनाओं से परिपूर्ण कविता।
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंजाते हुए साल को प्रणाम।
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंसर्वव्यापी सत्य का
जवाब देंहटाएंधुआं उठता रहा शमशान
से, अहंकार का घट
अंततः, टूट कर
बिखर ही
गया,
ये साल भी आख़िर गुज़र ही गया।
बस गुजरे और गुजरे जल्द ये साल...और कभी न लौटे फिर..
बहुत सुन्दर भावपूर्ण सृजन।
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंअसमय
जवाब देंहटाएंके
प्रहार से बदल गए सभी धर्म कर्म
के पैमाने, सर्वव्यापी सत्य का
धुआं उठता रहा शमशान
से, अहंकार का घट
अंततः, टूट कर
बिखर ही
गया,
ये साल भी आख़िर गुज़र ही गया..गुजरे हुए समय को दृश्यमान करती सुंदर रचना..।
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंबहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
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