25 दिसंबर, 2020

तृतीय जगत - -

आंख मूँद कर, तुम निगल रहे हो
खाद्य अखाद्य सब कुछ,
लेकिन, मैं नीलकंठ
नहीं हूँ, कि कर
जाऊं हर
चीज़
को हज़म, मेरी अंतःचेतना अभी
तक है जीवित, वो तमाम
लाल, नील, हरे, गेरु
रंगों से नहीं बुझेगी
ये जठराग्नि,
मुझे ज़रा
ध्यान
से देखो, शैशव से लेकर वार्धक्य
तक है अनवरत मंथर दहन,
अधजले काठ से कुछ
कम नहीं है मेरे
बचे रहने
का
भरम, मैं नीलकंठ नहीं हूँ, कि कर
जाऊं हर चीज़ को हज़म। न
जाने किस हरित प्रदेश
की तुम बात करते
हो, मेरे सीने
से निकल
कर
दूर तक जाती है, एक धूसर सड़क,
जिसके दोनों तरफ हैं सूखे हुए
दरख़्त, जिन के शीर्ष पर
उड़ रहे हैं बहु रंगी
परचम, मैं
नीलकंठ
नहीं
हूँ, कि कर जाऊं हर चीज़ को हज़म।
इस पार और उस पार के मध्य
झूल रहा है, सितारों का
सेतु, ठीक उसके
नीचे है, गाढ़
अंधकार,
जहाँ
बसते हैं, तृतीय जगत के उपेक्षित
लोग, विस्मृत देवताओं का
पुरातन घर, उनका
अपना अलग
है ईमान -
धरम,
मैं
नीलकंठ नहीं हूँ, कि कर जाऊं हर
चीज़ को
हज़म।

* *
- - शांतनु सान्याल


 



 

 
 
 

28 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब!उत्कृष्ट रचना। बधाई और शुभकामनाएं। सादर

    जवाब देंहटाएं

  2. मैं
    नीलकंठ नहीं हूँ, कि कर जाऊं हर
    चीज़ को
    हज़म।


    यथार्थ के साथ ही साफ़गोई....
    बेहतरीन कविता
    साधुवाद 🙏🌹🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 25 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२६-१२-२०२०) को 'यादें' (चर्चा अंक- ३९२७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  5. यथार्थ ! तृतीय जगत का सटीक चित्र उकेरा है आपने।
    साथ ही अब समझोता नहीं करेगा ये जगत ।
    सार्थक सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
  6. चाहे अनचाहे बनते रहते हैं नीलकंठ
    सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन ! आने वाला समय आपके और आपके सपूर्ण परिवार के लिए मंगलमात हो

    जवाब देंहटाएं

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past