08 दिसंबर, 2020

शहरतलीय लोग - -

युगों युगों से परिभाषाओं का जारी है
बदलना, अस्पृश्य से हरिजन
तक वही पेंचदार वर्ग-
पहेली, अचानक
एक दिन
तुम
ने कहा - ग़रीब शब्द अभिशापित, -
लाचार सा लगता है, लिहाज़ा
ख़ुद को ग़रीब न समझो,
अब उन्हें कौन ये
समझाए कि
ग़रीब
कोई
शौक़ से तो नहीं होता, चलो ठीक है,
शब्दों के हेर फेर से ज़िन्दगी
बदल जाए तो ख़राब
क्या है, ये सोचते
समझते, हम
इस स्तर
पर आ
गए जहाँ मेरुदंड टूट कर रिक्त उदर
से बाहर निकलता है, वो फिर
एक दिन तमाम लाव
लश्कर के साथ
आ पहुंचे,
और
शून्य में संविधान की एक आदम क़द
श्याम पट टांग दी, हाथों में एक
खड़िया देते हुए कहा - इस
पर एक लम्बी सरल
रेखा खींचिए
हम ने
हाँपते हुए किसी तरह से उस रेखा को
आगे बढ़ाया, वो बहुत दयावान
थे हमारी हालत पर ग़ौर
करते हुए कहा -
आप बैठ
जाएं,
वैसे हम खड़े ही कब थे, उन्होंने ठीक
सरल रेखा के नीचे एक बिंदु
डालते हुए कहा आप
लोग ग़रीब नहीं
हैं, बल्कि
इस
दारिद्र्य रेखा के उपनगरीय लोग हैं,
शहर से जुड़ने में कुछ और
वक़्त लगेगा - -

* *
- - शांतनु सान्याल
 

8 टिप्‍पणियां:

  1. तुम
    ने कहा - ग़रीब शब्द अभिशापित, -
    लाचार सा लगता है, लिहाज़ा
    ख़ुद को ग़रीब न समझो,
    अब उन्हें कौन ये
    समझाए कि
    ग़रीब
    कोई
    शौक़ से तो नहीं होता, चलो ठीक है,
    शब्दों के हेर फेर से ज़िन्दगी
    वाकई।

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  2. शहर से जुड़ने में वक्त लगेगा। बहुत खूब।

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